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मथुरा में मिनी आपरेशन ब्लू स्टार

अनथक
अनथक
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इन हालात के लिए ज़िम्मेदार कौन ?
मथुरा के जवाहर बाग पर क़ब्ज़ा सीधे तौर पर अपराध के राजनीतिक संरक्षण का परिणाम है | पुलिस और हिंसाचारियों के बीच जो ख़ूनी झड़प सामने आई , वह कोई मामूली बात नहीं थी , बल्कि यह आपरेशन ब्लू स्टार जैसी भयानक कार्रवाई से जरुर मात्रात्मक तौर पर कम है , जिसे मिनी आपरेशन ब्लू स्टार माना जा सकता है | पिछले हफ्ते इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर पुलिस जवाहर बाग से कब्जा हटाने गई थी। इसके बाद यहां हुई हिंसक झड़प में दो पुलिस अफसरों मथुरा के एसपी मुकुल द्विवेदी और एसओ संतोष कुमार यादव समेत 25 लोगों की मौत हो गई थी और पचास से अधिक घायल हो गये , जिनमें से अभी भी कई लोग विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हैं | उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले में किसी राजनीतिक साज़िश से इन्कार किया है | मथुरा हिंसा मामले में विगत 6 जून को केन्द्रीय गृह मंत्रालय को भेजी गई रिपोर्ट में राज्य सरकार ने कहा है कि पुलिस जवाहर बाग में खतरों का सही अंदाजा नहीं लगा पाई थी। राज्य सरकार ने इस बात से इन्कार किया है कि हथियार बंद राम वृक्ष यादव गिरोह , जो तथाकथित स्वाधीन भारत सुभाष सेना के नाम बरसों से उत्पात मचाये हुए था , उसे कोई राजनीतिक संरक्षण दिया गया | मगर यहाँ गौरतलब बात यह है कि पुलिस और प्रशासन की नाक के नीचे इस हथियारबंद गिरोह की गतिविधियाँ अबाध गति से चलती रहीं और ख़ुफ़िया विभाग भी सोया रहा , यहाँ तक कि यू एस ए निर्मित रॉकेट लांचर जैसे अति घातक हथियार तक वहां इकट्ठा किये जाते रहे | उत्तर प्रदेश सरकार की केंद्र को भेजी रिपोर्ट में यह स्वीकार किया गया है कि पुलिस वहां के हालात समझने में विफल रही। यह बात भी बताई गई कि पुलिस को बिना किसी तैयारी के कार्रवाई करनी पड़ी। रिपोर्ट में कहा गया है कि वहां आरोपियों के पास भारी मात्रा में हथि‍यार थे। अतः इस मामले के नक्सल लिंक की भी जांच की जा रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने मथुरा के डीएम राजेश कुमार और एसएस पी राकेश सिंह को हटा दिया । दोनों में तालमेल न होने की बात सामने आई थी | हिंसा का मुख्य आरोपी रामवृक्ष यादव भी पुलिस के साथ हुई गोलीबारी में मारा गया था। डीजीपी ने 6 जून को ट्वीट कर उसकी मौत की पुष्टि की थी। दूसरी ओर कुख्यात रामवृक्ष यादव के वकील तरुण गौतम ने मीडिया के सामने दावा किया कि जवाहर बाग गोलीबारी में राम वृक्ष यादव की मौत नहीं हुई थी। रामवृक्ष यादव हिंसा के दौरान सिर्फ घायल हुआ था, जिसे कई लोगों ने हिंसा के वक्त पुलिस लाइन की तरफ से भागते देखा गया। इसके साथ ही उन्होंने दावा किया कि इसकी वीडियो क्लिप भी है, लेकिन वह उनके पास नहीं है | पुलिस द्वारा मीडिया को दी गई मृत राम वृक्ष की तस्वीर और जिंदा रामवृक्ष की तस्वीर में अंतर है। रामवृक्ष यादव का अगर जिंदा फोटो देखें तो उसका चेहरा लंबा था और सिर के बाल कुछ कम थे, लेकिन मृत रामवृक्ष के फोटो में चेहरा गोल और सिर पर बाल ज्यादा थे। वहीं रामवृक्ष यादव के वकील का यहां तक भी कहना है की रामवृक्ष यादव की बेटी ने उसकी शव की पहचान करने की मांग की थी, जिसकी जानकारी कमिश्नर और जिले के अधिकारियों को देने की कोशिश की गई। मगर किसी ने मेरी बात नहीं सुनी और कथित राम वृक्ष के शव को जला दिया गया। एक हिंसक गिरोह स्वाधीन भारत सुभाष सेना और उसके स्वयंभू कमांडर रामवृक्ष यादव ने 14 मार्च, 2014 को मथुरा के जवाहर बाग पर अपने अनुयायियों के साथ कब्जा कर लिया। मजेदार तथ्य यह है कि 270 एकड़ में फैला यह पार्क उत्तर प्रदेश सरकार के उद्यान विभाग की संपत्ति था। इसमें विभागीय अधिकारियों के आवास एवं कार्यालय बने हुए थे। पूर्व आई पी एस अधिकारी विभूति नारायण राय लिखते हैं कि ” सैकड़ों की संख्या में लोग रोज अपने कामकाज के सिलसिले में वहां जाते थे। दो वर्ष तक विभागीय अधिकारी व आस-पड़ोस के लोग स्वाधीन भारत सुभाष सेना के कार्यकर्ताओं से पिटते, जलील होते रहे और मथुरा के जिला मजिस्ट्रेट व पुलिस अधिकारियों के पास दौड़ते रहे। एक अखबारी रपट के मुताबिक, कई दर्जन बार जिला प्रशासन ने प्रदेश सरकार को स्थिति की गंभीरता से अवगत कराने की कोशिश की, पर हर बार उसे झिड़कियां खानी पड़ीं। अंत में उच्च न्यायालय से अवैध कब्जा हटाने का आदेश जारी हुआ और उस पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। कार्रवाई तभी हुई, जब न्यायालय की अवमानना का नोटिस जारी हुआ।अधिकारियों के पास कोई विकल्प नहीं बचा, तब उन्हें अवैध कब्जा हटाने की कोशिश करनी पड़ी। आधे-अधूरे मन और गैर-पेशेवर तरीके से की गई कार्रवाई का नतीजा वही निकला, जो ऐसे मामले में हो सकता था। दो पुलिस अधिकारी समेत दो दर्जन से अधिक लोग मारे गए और 50 से ज्यादा घायल अस्पतालों में भर्ती हैं। मिनी ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसी स्थिति बन गई। ” लेकिन मामला इतना आसान नहीं हैं कि इसकी सारी ज़िम्मेदारी पुलिस पर डाल दी जाये और उत्तर प्रदेश पुलिस के ढीले प्रशिक्षण और अकर्मण्यता का रोना रोया जाए , जैसा कि श्री राय लिखते हैं , ” पिछले तीन दशक में इसके प्रोफेशनल स्तर में जो गिरावट आई है, वह अभूतपूर्व है। इसके लिए कोई एक राजनीतिक दल जिम्मेदार नहीं है, सभी शासक दलों ने इसमें योगदान दिया है। इन तीन दशकों में यह हुआ है कि ऊपर से नीचे तक पुलिस जातियों में बंट गई है। सरकारों के बदलते ही आप बता सकते हैं कि अब किन थानों या जिलों में किन जातियों के अधिकारी जाएंगे। जातियों के आधार पर नियुक्त इन पुलिसकर्मियों की निष्ठा कानून की किताबों और पुलिस नेतृत्व में न होकर अपने सजातीय राजनीतिक आकाओं में होती है। उन्हैं स्पष्ट पता होता है कि जब तक सरकार में बैठे नेताओं का समर्थन हासिल है, वे कुछ भी करके बच निकलेंगे। ” क्या इसी वजह से लगभग डेढ़ साल पहले मथुरा की तत्कालीन ज़िलाधिकारी बी . चन्द्रकला जवाहर बाग़ में कटी हुई बिजली तक खुद मौके पर पहुँचकर जुड़वा दी थी ? बताया जाता है कि इनकी शिवपाल यादव तक पहुंच है | इसी अधिकारी के कार्यकाल में कभी बाबा जयगुरुदेव के प्रमुख शिष्यों में शामिल रहने वाले राम वृक्ष यादव ने अपने गिरोह के साथ जवाहर बाग पर क़ब्ज़ा किया | वह अपना आश्रम स्थापित करना चाहता था। पहले उसकी निगाह बाबा जयगुरुदेव आश्रम की भूमि पर ही थी, मगर वह इसमें कामयाब नहीं हो पाया | बताया जाता है रामवृक्ष जयगुरुदेव आश्रम की भूमि पर काबिज होना चाहता था, जिसे लेकर विवाद हुआ तो प्रदेश सरकार के एक कद्दावर मंत्री ने दोनों का विवाद खत्म कराने के लिए बीच का रास्ता निकाला और रामवृक्ष से जवाहरबाग को 99 साल के पट्टे पर लेने के लिए प्रस्ताव मांगा गया। सपा सरकार रामवृक्ष यादव को 99 साल की लीज पर देने की तैयारी में थी। उसने शासन से धार्मिक और सामाजिक कार्यों के लिए बाग मांगा था। मार्च 2015 में इसका प्रस्ताव भी शासन को पहुंच गया था। यदि मामला अदालत नहीं पहुंचता तो यह बाग हिंसाचारियों को दे दिया जाता और यहाँ हिंसक गतिविधियों का स्थायी रूप से बड़ा अड्डा बन जाता | अधिवक्ता विजयपाल सिंह तोमर पूरे मामले को लेकर 22 मई 2015 को उच्च न्यायालय पहुंच गए।उनकी याचिका पर न्यायालय ने बाग को तत्काल खाली कराने का आदेश दे दिया। प्रशासन सरकार के इतने दवाब में था कि बाग खाली नहीं कराया गया। अवमानना का भी मामला बन रहा था। अतः जिला प्रशासन को कार्रवाई करनी पड़ी थी। अगर न्यायालय से कार्रवाई का आदेश न हुआ होता जवाहर बाग को रामवृक्ष यादव के हवाले कर दिया गया होता। जवाहर बाग को दो दिन के लिए अनुमति लेने वाला रामवृक्ष वहीं पर जम गया। यह प्रभावी राजनीतिक पहुंच के बिना संभव नहीं था। यह राजनीतिक प्रभाव का ही नतीजा था कि रामवृक्ष यादव और उसके समर्थकों के खिलाफ लोगों ने पुलिस से कई बार शिकायतें कीं, रिपोर्ट तक दर्ज कराई पर कभी कोई कार्रवाई नहीं की गयी ! मथुरा हिंसा के मास्टर माइंड रामवृक्ष यादव की एक डायरी से उसके सीक्रेट फंड का खुलासा हुआ है। पुलिस को जवाहर बाग से जली हुई डायरी मिली है, जिससे रामवृक्ष की पाई-पाई का हिसाब सामने आ गया है। इस डायरी से इस बात का खुलासा हुआ है कि रामवृक्ष यादव और उसके संस्था को लाखों का डोनेशन हर महीने अलग-अलग राज्यों से मिलता था औऱ वह इस रकम का इस्तेमाल पार्क के रखरखाव से लेकर पानी, जेनरेटर और टैक्सी के किराए तक पर खर्च करता था। साथ ही अपने खिलाफ चल रहे कोर्ट केस के लिए वकील को भी लाखों का पेमेंट करता था। इस बीच अखिलेश सरकार ने मथुरा कांड की न्यायिक जाँच एक सदस्यीय आयोग से कराने का फ़ैसला किया है , जिसकी अध्यक्षता जस्टिस इम्तियाज़ मुर्तज़ा करेंगे | गौरतलब है कि ऐसे जाँच आयोगों का हमेशा ही बुरा हश्र हुआ है | इस मामले की गंभीरता से जाँच होनी चाहिए | सुप्रीम कोर्ट ने इस खूनखराबे की सीबीआई जांच कराने की गुहार को खारिज कर दिया है। याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार को यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि वह मामले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश करें।शीर्ष अदालत में इस मुद्दे पर याचिका भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दाखिल की गई थी। अदालत की ओर से कहा गया कि मथुरा मामले पर केंद्र सरकार सीबीआई जांच थोप नहीं सकती है। इससे पहले याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील कामिनी जायसवाल ने जस्टिस पीसी घोष और जस्टिस अमिताभ रॉय की अवकाशकालीन पीठ के समक्ष इस मामले का उल्लेख करते हुए जल्द सुनवाई की गुहार की थी।याचिका में कहा गया था कि केंद्र सरकार इस मामले की जांच सीबीआई से कराने के लिए तैयार है , लेकिन राज्य सरकार ने इसकी सिफारिश नहीं की है। अदालत चाहे तो इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए जांच सीबीआई को सौंप सकती है। साथ ही यह भी कहा गया कि केंद्र और राज्यों को इस तरह की घटनाओं में मारे गए लोगों के लिए मुआवजे के लिए एकसमान नीति बनाने का निर्देश दिया जाए। उन्होंने कहा था कि हिंसा के बाद घटनास्थल के मौजूद साक्ष्य नष्ट किए जा रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मथुरा के जवाहर पार्क मामले में करीब 200 गाड़िया जलाई गई थी। उन्होंने कहा कि घटना की गंभीरता को देखते हुए मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी जानी चाहिए।
– डॉ. राम पाल श्रीवास्तव

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