Menu
blogid : 18968 postid : 861610

भ्रष्टाचार की गंगा मनरेगा में मस्ती करते वनकर्मी

अनथक
अनथक
  • 34 Posts
  • 3 Comments

mnrega5
मज़दूरी हड़पने के अपने ही बुने जाल में फंसा बलरामपुर वन विभाग , भ्रष्टाचार की गंगा मनरेगा में मस्ती करते में वनकर्मी , सामंती युग में जीने को अभिशप्त दर्जनों मजदूर
एक ओर केंद्र सरकार ने मनरेगा में बड़े पैमाने पर व्याप्त भ्रष्टाचार के बावजूद इसे जारी रखने का फ़ैसला किया है , वहीं दूसरी ओर भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की यह ‘ खुशकिस्मती ‘ छिपाए नहीं छिप रही है | ऐसा क्यों न हो ! अवैध धनउगाही का यह अजस्र स्रोत जो ठहरा ? इस मामले में मनरेगा भ्रष्टाचारियों के लिए अन्य सरकारी योजनाओं और कार्यकर्मों में अच्छी दुधारू गाय है | जबकि यह बात भी उतनी ही सच है कि भ्रष्टाचारी हर परिस्थिति में अपना रास्ता निकाल ही लेते हैं |
उत्तर प्रदेश का बलरामपुर ज़िला प्रदेश के उन कुछ जिलों में शामिल है , जहाँ मनरेगा में सर्वाधिक भ्रष्टाचार हुआ है | यहाँ कुछ अवधियों में हुए घोटालों की जाँच सी बी आई द्वारा जारी है , फिर भी भ्रष्टाचार के मामलों में कमी नहीं आई है |
बताया जाता है कि बलरामपुर का वन विभाग मनरेगा – भ्रष्टाचार में अपनी अलग पहचान रखने लगा है | यहाँ की मनरेगा शिकायतें सामंती युग की दुखद – दारुण कथा बयान करती हैं | पुष्ट खबरों के अनुसार , बनकटवा वन परिक्षेत्र में विगत वर्ष मनरेगा के तहत कराए गए वृक्षारोपण व झाड़ियों की सफ़ाई के कामों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की शिकायतें हैं | लगभग एक साल बीतने वाले हैं , यहाँ काम करने वाले बहुत से मज़दूरों को मज़दूरी नहीं मिल पाई है , जिसके कारण उन्हें तरह – तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है |
वन अधिकारी और कर्मचारी अपने भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए तरह – तरह के झूठ ,गलतबयानी और मक्कारी का सहारा ले रहे हैं और खुलेआम क़ानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं | वन अधिकारी भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए अब कहते हैं कि मजदूरों ने काम ही नहीं किया , हालाँकि मजदूरों की शिकायत के महीनों बाद दी गई जाँच रिपोर्ट में बहुत की खामियां , विरोधाभास , भ्रामक तथ्य और गलतबयानियाँ पाई जाती है , जो उन्हें आसानी से कठघरे में खड़ा कर देती है | अतः इनके लीतापोती के प्रयास ख़ुद भ्रष्टाचार के पुख्ता सबूत बनने लगते हैं ! आइए देखें भ्रष्टाचार के गोतेबाज़ ‘ अपने ‘भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए बुने गए जाल में अनचाहे तौर पर खुद किस प्रकार फंसते हैं –
बलरामपुर के प्रभागीय वनाधिकारी एस एस श्रीवास्तव 16 जनवरी 15 को इस बाबत जिला विकास अभिकरण , बलरामपुर , पत्रांक 2045 / मनरेगा / शि . प्रको . / 2014 – 15 / दिनांक 20 – 12 = 2014 का हवाला देते हुए मुख्य विकास अधिकारी , बलरामपुर को लिखते हैं कि ” आपके उक्त संदर्भित पत्र के अनुपालन में संबंधित क्षेत्र के क्षेत्रीय वन अधिकारी से आख्या मांगी गई , जिस पर उनके द्वारा यह अवगत कराया गया है कि शिकायतकर्ता श्रमिकों से वर्णित अवधि में वृक्षारोपण एवं अनुरक्षण हेतु अथवा अन्य न तो कोई कार्य लिया गया है और न ही किसी स्तर पर कोई भुगतान लंबित है | ”
श्री श्रीवास्तव अगर बनकटवा के क्षेत्रीय वन अधिकारी [ रेंजर ] पी . डी . राय की आख्या और श्रमिकों की शिकायत को ठीक से पढ़ लेते , तो अपनी टिप्पणी ऐसी न करते , बल्कि आख्या में भ्रामक , गलत , विरोधाभासी और पक्षधरतापूर्ण बातों और विवरणों के मद्देनज़र रेंजर और फारेस्ट गार्ड से जवाब – तलब करके श्रमिकों को उनकी हजारों रूपये की महीनों से लंबित मजदूरी चुकता करने का तत्काल आदेश देते | मगर उन्होंने ऐसा न करके श्रमिकों की आर्थिक व मानसिक परेशानी बढ़ाने का ही कार्य किया | क्या यह भ्रष्टाचारियों को बचाने का प्रयास नहीं है ?
यह आख्या नियमानुसार भी नहीं है | इसमें न तो शिकायत के बिन्दुओं का समावेश है और न ही श्रमिकों का कोई पक्ष रखा गया है | हद तो यह है कि जाँच में शिकायतकर्ताओं की पूरी उपेक्षा की गई और उनसे कोई बात नहीं की गई ! बस बैठे – बैठाए इच्छानुसार आख्या दे दी गई | इस मामले में तत्कालीन रेंजर अशोक चंद्रा का कोई बयान नहीं है , जबकि उनके द्वारा कार्यरत मजदूरों की फोटोग्राफी कराई गई थी , जो मजदूरों के काम करने का बड़ा सबूत है | इस भ्रष्टाचार कांड में मुख्य भूमिका निभाने वालों में से वाचर सिया राम और राम किशुन के भी किसी बयान का उल्लेख नहीं है , जबकि शिकायत पत्र में साफ़ कहा गया है कि तत्कालीन फारेस्ट गार्ड नूरुल हुदा और टेंगनवार चौकी के वाचर सिया राम ने काम लिए थे | यह भी कहा गया है कि ” एक अन्य वाचर राम किशुन पुत्र झगरू के द्वारा दूसरों के जॉब कार्ड और बैंक पासबुक इकट्ठा कराए गए और जिन लोगों ने मजदूरी की ही नहीं उनके नाम पर हम लोगों के हज़ारों रुपये उठा लिए गए | ”
उल्लेखनीय है कि बारह मजदूरों – केशव राम , राम वृक्ष , मझिले यादव , राम बहादुर , बड़कऊ यादव , कृपा राम , खेदू यादव , राम प्यारे , शिव वचन , शंभू यादव , संतोष कुमार यादव और रामफल ने मीडिया के साथ – साथ पूर्व जिलाधिकारी [ बलरामपुर ]
श्री मुकेश चन्द्र को एक अगस्त 14 को पंजीकृत पत्र द्वारा अपनी शिकायत से अवगत कराने के बाद मनरेगा हेल्पलाइन पर भी अपनी शिकायत [ संख्या [ MGW / 2014 / 00515 ] विगत वर्ष तीन अगस्त 14 को दर्ज कराई थी , जिसकी जाँच का आदेश लंबे समय के पश्चात 20 /12 / 2014 को दिया गया था | केन्द्रीय प्रशासनिक सुधार एवं जन शिकायत विभाग , नई दिल्ली में भी अभी इन मजदूरों की शिकायत लंबित है |
घोर विरोधाभासी और गलत बातें
बनकटवा के रेंजर राय ने अपनी रिपोर्ट में बड़ी मनगढ़ंत , भ्रामक और गलत बातें लिखी हैं | लगता है ,उन्होंने शिकायत पत्र को सिरे से पढ़ा ही नहीं है | एक ओर वे शिकायतकर्ता श्रमिकों से काम लेनेवाले और वन रक्षक [ फारेस्ट गार्ड ] नूरुल हुदा , जो अब अन्यत्र तैनात हैं , की इस बात की पुष्टि करते हैं कि शिकायतकर्ताओं से काम ही नहीं लिया गया | उन्होंने क्या उस फोटो को नहीं देखा , जिसे पूर्व रेंजर अशोक चंद्रा ने खिंचवाया था ? अथवा उक्त फोटो अब भ्रष्टाचारियों द्वारा नष्ट कर दी गई है ? शिकायतकर्ता श्रमिकों ने अपने शिकायत पत्र में लिखा है कि ” पूर्व रेंजर अशोक चन्द्रा जी ने काम के दौरान हम सभी मज़दूरों के फोटो खिंचवाए थे , जो हमारे काम करने का पुष्ट प्रमाण है | ”
प्रभागीय वनाधिकारी यही बात मानते हैं कि शिकायतकर्ता श्रमिकों से काम नहीं लिया गया , जो गलत और भ्रामक है | क्षेत्रीय वनाधिकारी श्री राय यह लिखते हैं कि ” कृपा राम , राम बहादुर , बड़कऊ , राम फल ने काम किया था , जिनका भुगतान हो चुका है | ” इस कथन से इस बात की पुष्टि हो जाती है कि शिकायतकर्ता श्रमिकों में से इन चारों ने काम किया था | ऐसे में प्रभागीय वनाधिकारी एस एस श्रीवास्तव और फारेस्ट गार्ड नूरुल हुदा की बात पूर्णतः गलत साबित हो जाती कि मजदूरों से काम नहीं लिया गया और उन्हें जानते – पहचानते तक नहीं | मगर अफ़सोस की बात यह है कि इनकी मजदूरी भी भुगतान नहीं की गई है | इन श्रमिकों ने भी वर्तमान ज़िलाधिकारी [ बलरामपुर ] श्रीमती प्रीति शुक्ला को गत 20 फरवरी 15 को पंजीकृत पत्र भेजकर एक बार फिर लगभग साल भर से लंबित मजदूरी दिलाने की गुहार लगाई है | यहाँ सहज सवाल यह उठता है कि अगर इन्हें मजदूरी मिल गई होती , जैसा कि श्री राय का कहना है , तो ये जिलाधिकारी के पास पुनः फ़रियाद क्यों करते ? मज़दूरों ने बताया कि उन्हें मज़दूरी नहीं दी गई है | क्षेत्रीय वनाधिकारी झूठ बोल रहे हैं |
एक बड़ा झूठ
बनकटवा के क्षेत्रीय वनाधिकारी श्री राय किस प्रकार भ्रष्टाचार को प्रश्रय देते नज़र आते हैं , जब वे जोड़ – घटाव का मामूली हिसाब भी न लगा पाकर अपनी पदेन अक्षमता सिद्ध करते हैं और गलत आंकड़े देकर उच्चाधिकारियों की आँखों में धूल झोंकते हैं ! देखिए वे क्या लिखते हैं –
” स्पष्ट है कि जब दि. 28-1-14 से काम प्रारंभ हुआ तो दिनांक 26-3-14 जैसा कि शिकायतकर्ता ने अपने शिकायत में लिखा है | शिकायतकर्ता द्वारा कैसे 70 दिन काम किया गया | ”
यह जाँच अधिकारी की बड़ी पक्षधरता है कि शिकायतकर्ता पर ही सवालिया निशान लगा दिया गया ! जबकि शिकायत पत्र स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि – ” हम लोगों से सोहेलवा वन्य जीव प्रभाग के बनकटवा रेंज के पूर्व फारेस्ट गार्ड श्री नूरुल हुदा जो अब उक्त वन प्रभाग के जनकपुर [ निकट तुलसीपुर ] रेंज में तैनात हैं और टेंगनवार चौकी के वाचर श्री सिया राम ने बनकटवा रेंज सीमा में मनरेगा के तहत इसी वर्ष [ 2014 ] 13 जनवरी से 26 मार्च के बीच विभिन्न अवधियों में वृक्षारोपण और झाड़ी की सफ़ाई के काम कराये थे | हम मज़दूरों से दो – ढाई महीने तक काम कराये गये , लेकिन कई महीने बीत जाने के बाद भी हजारों रुपये मज़दूरी का भुगतान नहीं किया गया है|”
कोई भी जाँच अधिकारी इस प्रकार की गलतबयानी नहीं कर सकता |
शिकायत पत्र में जो अवधि उल्लिखित है , उसके अनुसार 73 दिन का अन्तराल हुआ | अतएव श्री राय की बात [ कुतर्क ] ख़ुद ख़ारिज हो जाती है | इस पर तुर्रा यह कि वन विभाग और कर्मचारियों की छवि ख़राब करने की नीयत से शिकायत की गई है | मतलब यह कि मजदूरी मांगना छवि ख़राब करना हो गया ! जिन गरीबों को दो जून खाने को लाले पड़े हों , वे अपना जायज़ हक़ मांगकर – मजदूरी मांगकर पूरे विभाग की छवि कैसे ख़राब कर सकते हैं ? कैसी बेतुकी बात है यह ?
अतः यह कोई जाँच रिपोर्ट [ आख्या ] न हुई , बल्कि एक झूठ छिपाने के लिए हज़ार झूठ बोलने जैसी है |
आर टी आई के तहत मांगे गए सवालों का जवाब न देकर कौन विभाग की छवि ख़राब कर रहा है और क़ानून का मखौल उड़ा रहा है ? बताया जाता है कि यह भी भ्रष्टाचार को दबाने का प्रयास ही है और दाल में कुछ काला ज़रूर है | अगर वन विभाग जवाब देता , तो साफ़ तौर पर उसकी छवि सुधरती और पारदर्शिता व भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था से लोकतंत्र मजबूत होता | फिर लोकतंत्र की यहाँ ऐसी परिभाषा न बनती – ‘ अपनों का , अपने लिए , अपना शासन |’ मालूम हो कि उक्त अवधि में कराए गए कामों का विवरण बार – बार आर टी आई के अंतर्गत माँगा गया , लेकिन जवाब न मिलने की स्थिति में अब राज्य सूचना आयुक्त , लखनऊ के पास यह मामला लंबित है |
अब भ्रष्टाचारी उन श्रमिकों को पहचानने से इन्कार कर रहे , जिन्होंने असल में काम किया था |
तत्कालीन फारेस्ट गार्ड नूरुल हुदा ने जिनके बारे में बताया जाता है कि भ्रष्टाचार उनका पीछा नहीं छोड़ता , अपनी तहरीर में श्रमिकों के बारे में लिखा है कि मैं इन्हें जानता – पहचानता नहीं हूँ | मैंने इनसे कभी काम नहीं लिया है | मुझे बदनाम व परेशान करने की नीयत से इन लोगों द्वारा मेरी शिकायत की गई है |
अगर इनकी बात सच होती , तो रेंजर श्री राय चार श्रमिकों को भुगतान की बात नहीं लिखते | दोनों की बात में बड़ा विरोधाभास मौजूद है , जो भीं उच्च स्तरीय जाँच का तकाज़ा करता है | उल्लेखनीय है कि श्रमिकों ने नुरुल हुदा पर डराने – धमकाने के आरोप लगाए हैं , जिनकी जाँच नहीं की गई | श्रमिकों ने अपनी शिकायत में कहा है कि ” जब हम लोग फारेस्ट गार्ड महोदय से पैसे मांगने जाते हैं , तो देने से इन्कार कर देते हैं और कहते हैं कि नहीं दूंगा , क्या कर लोगे ? यह धमकी भी देते हैं कि बार – बार मांगने आओगे , तो जेल भेजवा दूंगा | ” ऐसी भी शिकायतें मिलती रही है कि वन विभाग के लोग अपने विरोधियों को फर्जी मामलों में फंसाकर परेशान करते रहते हैं | इन्होंने भ्रष्टाचार के अलग – अलग मद खोल रखे हैं , बालू उठाने , लकड़ी काटने आदि के फिक्स रेट लगे हुए हैं !
जब जॉब कार्ड , पास बुक जमा कराए गए
मीडिया में इस भ्रष्टाचार कांड की रिपोर्ट छपने के बाद बनकटवा के वन प्रभाग में थोड़ी खलबली मची, जिसके नतीजे में मजदूरी देने का मन बनाया गया | अतः शिकायतकर्ता मजदूरों से यह आश्वासन देकर जॉब कार्ड और बैंक पासबुक जमा कराए गए कि मजदूरी का शीघ्र भुगतान कर दिया जाएगा | इसी बीच भ्रष्टों को पता चला कि उनके काले कारनामों की शिकायत उच्च स्तर पर की गई है , तो वनकर्मियों ने यह कहकर जॉब कार्ड और पासबुक लौटा दिए कि तुम लोगों को एक पैसा भी नहीं मिलेगा | वनकर्मियों का यह क़दम भी सिद्ध करता है कि मजदूरों ने काम किए और उच्च स्तर पर शिकायत के कारण उन्हें मजदूरी नहीं दी जा रही है |
जाँच कार्य में भी रिश्वत !
21 सितंबर 2014 को तत्कालीन जिलाधिकारी मुकेश चंद्र को ईमेल द्वारा अनुरोध और आगाह किया गया था कि वनकर्मियों द्वारा मजदूरी डकारने की जाँच पर लीपापोती करवाने के लिए जाँच करनेवालों को रिश्वत देने का एक और घिनौनी योजना बनाई है | इस बात का खुलासा खुद एक वनकर्मी ने जॉब कार्ड और पास बुकों को वापस करने के बाद मजदूरों के साथ बातचीत में किया था | मजदूरों ने जिलाधिकारी महोदय को लिखा था –
” अभी तक हम लोगों को मजदूरी का भुगतान नहीं हो पाया है | बनकटवा वन प्रभाग के दफ्तर बाबू – क्लर्क – श्री अचित कुमार मिश्रा का कहना है कि तुम लोगों को एक रुपया भी मजदूरी नहीं मिलेगी . जो जाँच करने आयेंगे उन्हें तुम लोगों की मजदूरी की धनराशि रिश्वत के रूप में देकर केस समाप्त करा लेंगे | बकौल मिश्रा जी के ,इस मामले में वन अधिकारी और कर्मचारी आपस में यही निर्णय ले चुके हैं | . अतः हम मजदूरों की आपसे करबद्ध प्रार्थना है कि हमें यथाशीघ्र मजदूरी दिलाई जाए और दोषी अधिकारियों व कर्मचारियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाए | ” यह बात मनरेगा हेल्पलाइन और केन्द्रीय प्रशासनिक सुधार एवं जन शिकायत विभाग को शिकायत संख्या GOVUP/E/2014/01669 के अंतर्गत भी बताई गई थी | मगर वही हुआ , जिसकी आशंका जताई गई थी |
बताया जाता है कि MIS के द्वारा श्रमिक – भुगतान का तोड़ भ्रष्टाचारियों ने तलाश कर लिया है|अब वे जो काम नहीं करते उनके नाम पर मजदूरी बैंक में डलवाते हैं और मजदूर से उसके बैंक अकाउंट से पैसे निकलवाकर बहुत थोड़ी सी रकम उसे दे देते हैं , शेष धनराशि की बंदरबाँट कर लेते हैं | उक्त मजदूरों ने अपनी शिकायत में लिखा है कि ” वनाधिकारियों और कर्मचारियों ने बहुत शातिराना ढंग से धन हड़पने का काम किया | एक अन्य वाचर राम किशुन पुत्र झगरू के द्वारा दूसरों के जॉब कार्ड और बैंक पासबुक इकट्ठा कराए गए और जिन लोगों ने मजदूरी की ही नहीं उनके नाम पर हम लोगों के हज़ारों रुपये उठा लिए गए | इस प्रकार फर्ज़ी तौर पर हम गरीबों के पैसे नूरुल हुदा जी,सियाराम जी और राम किशुन ने हड़प लिए | इस भ्रष्टाचार कांड में अन्य वनाधिकारियों एवं अन्य की संलिप्तता की अधिक संभावना है | ”
उदाहरण के रूप में ग्राम – टेंगनवार निवासी पेशकार नामक ग्रामीण के बैंक अकाउंट में अट्ठारह सौ रूपये डाले गये और उससे यह पूरी धनराशि निकलवायी गयी | वनाधिकारियों व कर्मचारियों ने उसे तीन सौ रूपये दिए और डेढ़ हज़ार रूपये ख़ुद डकार गये | इस प्रकार बिना काम किये पेशकार को तीन सौ रूपये मिल गये और जिन्होंने कई महीने तक काम किये , वे मजदूर अपनी मज़दूरी पाने के लिए दर – दर भटक रहे हैं | उनका कहना है कि उनका सबसे बड़ा क़सूर यह है कि उन्होंने उस विभाग में काम किया , जहाँ मजदूरी देने की मांग पर ठेंगा दिखाया जाता है | भ्रष्टाचार की इस घटना की पुनरावृत्ति न हो , इसके लिए नितांत आवश्यक है कि देश में लोकतंत्र के नाम पर भ्रष्ट तंत्र जहाँ – जहाँ मौजूद है , उसको समूल नष्ट किया जाए |
– Dr.Ram Pal Srivastava

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh