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शायद इक तूफ़ान – सी है ज़िंदगी

अनथक
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बहुत कम समय में हिंदी साहित्य में विशिष्ट पहचान बनानेवाले , विशिष्ट हौसले के धनी मेरे आत्मीय दिवंगत मित्र , छोटी देवकाली , फ़ैजाबाद [ उ . प्र . ] के निवासी श्री मुन्ना श्रीवास्तव जी की याद आज इस तरह आयी | कृपया अवलोकन कीजिए श्रद्धांजलि स्वरुप एक शेअर –
मैं नहीं कहता तुम्हें मरहूम , तुम ज़िन्दों के ज़िन्दा हो ,
तुम्हारी नेकियाँ बाक़ी , तुम्हारी खूबियाँ बाक़ी |
मुन्ना जी बड़े निराले , सौम्य व्यक्तित्व वाले थे | हर साहित्यिक कार्यक्रम में इतनी दिलचस्पी के साथ शिरकत करते मानो उनका व्यक्तिगत कार्यक्रम हो | थे तो आप कृशकाय , किन्तु चलते थे बुलेट से …. जब मैं उनके घर जाता , बहुत ख़ुश होते ….. पता नहीं कहाँ – कहाँ बुलेट पर बैठा कर घुमाते … अब उनकी यादें निःशेष हैं , जो मेरे लिए बहुमूल्य धरोहर हैं | ….. गर चले जीने के हाथों हम , शायद इक तूफ़ान – सी है ज़िंदगी |

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