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गिरती – उठती आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था

अनथक
अनथक
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indian1
आज़ादी के बाद से ही हमारा देश विकास के पथ पर अग्रसर है | पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु ने विकास – कार्यों की आधारशिला रखी थी और इस दिशा में बहुत काम हुए थे | कांग्रेस ने कई पंचवर्षीय योजनाओं को अमली जामा पहनाया | देश आर्थिक रूप से मज़बूत होता चला गया , लेकिन यह भी सच है कि इस प्रक्रिया में उसे बहुत – से अवरोधों , रुकावटों और आयामों का सामना करना पड़ा | फिर भी हमारी अर्थव्यवस्था गिरती – उठती आगे बढ़ती रही | इसका एक बड़ा कारण था दीर्घकालिक सोच और लक्ष्यबद्ध अनुशासन | सरकार के दिशानिर्देशों के साथ नियंत्रणबद्ध योजना – प्रक्रिया के चलते भारत ने वर्ष 1954-55 और और 1964-65 के बीच सालाना औसतन 8 फीसदी से ज्यादा की औद्योगिक वृद्घि हासिल की। लेकिन इसके बाद वह बिल्कुल अलग पड़ गया। इस दौर के अगले 10 सालों को (1965-66 से 1974-75) आजादी के बाद के सबसे बुरे वक्त के तौर पर देखा गया। औद्योगिक वृद्धि में गिरावट आई और यह सालाना 3 फीसदी रह गई | वहीं कुल वृद्घि दर में भी कमी आई और यह करीब दो फीसद पर आ गई। भारत को समय-समय पर भुगतान असंतुलन का सामना करना पड़ा। ऐसे में भारत को अपनी न्यूनतम जरूरतें पूरी करने के लिए विदेश से मदद की गुहार लगाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा था। 1970 के मध्य से योजनागत विकास से मोहभंग होने लगा और अर्थव्यवस्था में उदारीकरण की मांग होने लगी। 5 जनवरी 1976 को संसद में दिए गए राष्ट्रपति के अभिभाषण में सरकार ने ऐसे नियंत्रण को खत्म करने का इरादा जताया जो उत्पादकता बढ़ाने और उद्यमशीलता के आधार के लिए प्रासंगिक नहीं थे। 1991 के आर्थिक उदारीकरण ने देश को कुछ नुक़सानों के साथ आर्थिक रूप से मज़बूत किया |
वर्तमान मोदी सरकार भी आर्थिक सुधार की दिशा में तेज़ी के साथ बढ़ रही है | वर्ल्ड बैंक ने कहा है कि ‘मोदी डिविडेंड’ यानी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नई सरकार बनने से सेंटिमेंट में आए सुधार के कारण भारत का आर्थिक विकास साल 2015-16 में बढ़कर 6.4% हो सकता है। बैंक ने कहा है कि मोदी सरकार को पिछली सरकार के मुकाबले ज्यादा मार्केट-फ्रेंडली माना जा रहा है और इसके चलते कारोबारियों का उत्साह बढ़ सकता है। वर्ल्ड बैंक ने अपनी रिपोर्ट ‘साउथ एशिया इकनॉमिक फोकस’ में कहा, ‘भारतीय अर्थव्यवस्था समूचे दक्षिण एशिया क्षेत्र के उत्पादन में 80 पर्सेंट योगदान करती है और 2014-15 में 5.6% ग्रोथ हासिल कर यह 2015-16 में 6.4% की रफ्तार से बढ़ेगी।’ देश के आर्थिक विकास के स्रोतों में अस्वाभाविक रूप से एक व्यक्ति विशेष का उल्लेख करने के अलावा रिपोर्ट में परंपरागत तरीका ही अपनाया गया है। इसमें कहा गया है कि दरमियानी तौर पर अर्थव्यवस्था की हालत बेहतर करने के लिए ढांचागत सुधार करने होंगे और माइक्रो-इकनॉमिक मैनेजमेंट में बुद्धिमानी दिखानी होगी। भारत के भीमकाय पड़ोसी का जिक्र करते हुए वर्ल्ड बैंक ने कहा कि चीन की ग्रोथ अगले साल सुस्त होकर 7.2% रह जाएगी। इसी साल अप्रैल में वर्ल्ड बैंक ने इसके 7.5% रहने का अनुमान लगाया था।
बैंक को यह भी नहीं लग रहा है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए वहां का फेडरल रिजर्व जो कुछ कर रहा है, उससे पीछे हटने पर भारत के लिए कोई खतरा है। बैंक का कहना है कि इंडियन इकॉनमी अपनी हालत संभालने के लिहाज से पहले से ज्यादा मजबूत हो चुकी है। नई सरकार की ओर से नीतिगत आर्थिक मामलों पर हाल में उठाए गए कदमों का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की आर्थिक विकास दर साल 2016-17 में बढ़कर 7% तक पहुंच जाएगी। सरकार ने रेलवे और रक्षा क्षेत्र में एफडीआई के लिए दरवाजे और खोले हैं, योजना आयोग का वजूद खत्म कर उसकी जगह एक आर्थिक सलाहकार समिति बनाने की बात की है और वित्तीय समायोजन की दिशा में कदम बढ़ाया है। साथ ही भूमि अधिग्रहण के नियम सरल किए हैं और श्रम कानूनों में बदलाव किए हैं। वर्ल्ड बैंक ने दो अलग-अलग रिपोर्टों में कहा कि दक्षिण एशिया में आर्थिक विकास के साल 2015 में बढ़कर 6% होने की संभावना है और इसकी वजह भारत होगा। दूसरी ओर, चीन की जीडीपी ग्रोथ में सुस्ती के कारण पूर्व एशिया की आर्थिक विकास दर 2015 में घटकर 6.9% रह जाएगी। इसलिए केंद्र सरकार के लिए नीतिगत सुधार करना आसान हो सकता है। अगले साल के अंत में बिहार में चुनाव होंगे, जहां भाजपा जदयू से सत्ता छीनने की कोशिश करेगी। वैसे आर्थिक क्षेत्र में नीतिगत सुधार की शुरुआत सरकार ने विगत 18 अक्तूबर से ही कर दी। उसने डीजल को डीकंट्रोल कर दिया और गैस के दाम बढ़ाए। इससे ऊर्जा विस्तार और उत्पादन विस्तार में मदद मिलेगी। भाजपा के एक बड़े नेता के अनुसार , आने वाले दिनों में और बड़े सुधारों का ऐलान हो सकता है। इस बाबत मोदी मंत्रिमंडल में फेरबदल और विस्तार की अधिक संभावना है | नीति – निर्माण से जुड़े एक बड़े अफसर का कहना है कि ‘सरकार ने साफ संकेत दिए हैं कि वह ‘पेंडिंग ‘ सुधारों पर आगे बढ़ेगी। जहां भी सुधार की जरूरत होगी, उसे किया जाएगा और हम इसके लिए तैयार हैं।’ इस मामले में बार्कलेज कैपिटल के सिद्धार्थ सान्याल ने कहा, ‘2015 के अंत तक सरकार के पास काफी काम करने की गुंजाइश है। इस दौरान सिर्फ दो राज्यों [ जम्मू – कश्मीर और झारखंड ] में विधानसभा चुनाव होने हैं।’ पिछले हफ्ते नौकरशाही में भी बड़े बदलाव हुए थे। वित्त मंत्रालय में इस बदलाव के बाद जो नई टीम बनी है, उससे आर्थिक सुधार तेज किए जाने के संकेत मिलते हैं। नई सरकार ने अरविंद सुब्रमण्यन को नया प्रमुख आर्थिक सलाहकार बनाया है, जबकि राजीव महर्षि को आर्थिक मामलों के सचिव का पद दिया गया है।

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