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मानव – प्रेम

अनथक
अनथक
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धर्म क्या है ? जैसा कि शब्द से स्पष्ट है , यह धारण करने की चीज़ है . घर – बाहर हर जगह …. कोई यह कहे कि घर से निकलो , तो धर्म को घर पर छोड़ दो ….. इस प्रतिक्रिया पर आप क्या कहेंगे?
यही ना कि उसे मानव जीवन के बारे में कुछ बहुत अता – पता नहीं है . प्रभु – भक्ति से उसका कोई सरोकार नहीं . वास्तव में जीवन – कर्म और धार्मिकता अर्थात भक्ति को पृथक नहीं किया जा सकता . हाँ , पाखंड , आडम्बर और दिखावे से अवश्य बचना चाहिए . साथ ही यह भी सावधानी बरतनी चाहिए कि धार्मिकता – प्रदर्शन से अन्यों को कष्ट न पहुंचे , बल्कि धार्मिकता ऐसी होनी चाहिए , जिससे मानव – प्रेम बढ़े . यह तभी सम्भव है , जब प्रभु – भक्ति बढ़े . अतः ऐसे कर्मों से संलग्न होना चाहिए , जिनसे भक्ति का विस्तार हो . मानव – सेवा के सभी कार्य इसके अंतर्गत आते हैं . कहा गया है – ‘ भक्ति शास्त्राणि मननीयानि तदुद बोधक कर्मान्यपि करणीयानि ‘ – अर्थात , भक्तिशास्त्र का मनन करते रहना चाहिए और ऐसे कर्म भी करने चाहिए , जिनसे भक्ति की वृद्धि हो |
Ram Pal Srivastava

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