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केरल में शराबबंदी – एक सार्थक कदम

अनथक
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वास्तव में शराबबंदी मानवता के लिए अत्यंत हितकारी है | शराब की मार से सबसे अधिक प्रभावित भारतीय राज्यों में केरल ही है , लेकिन यह भी सच है कि सामान्यतः राज्य सरकारों की शराब प्रोत्साहक नीतियों के चलते देश में राजस्व की उगाही से कई गुना अधिक मानव संसाधन का नुक़सान हो रहा है | लोग आर्थिक बदहाली के शिकार हैं , परिवार टूट चुके हैं और शराब ने मानवीय संबंधों को बुरी तरह प्रभावित कर डाला है , लेकिन यह भी सच है कि केरल में प्रति व्यक्ति शराब की खपत देश भर में सबसे ज़्यादा है | इसने महाराष्ट्र और पंजाब जैसे दूसरे राज्यों को भी पीछे छोड़ दिया है, जिनका इस मामले में अब तक रिकॉर्ड था | केरल में सत्तारूढ़ यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ़्रंट सरकार चरणबद्ध ढंग से शराबबंदी की योजना बना रही है | यूडीएफ़ के फ़ैसले पर अभी राज्य कैबिनेट की मुहर लगनी बाक़ी है. इसके लागू होने के बाद अप्रैल 2015 में 318 रेस्तरां बार के लाइसेंसों का नवीनीकरण नहीं होगा | यही नहीं, प्रति वर्ष राज्य नियंत्रित रीटेल आउटलेट के लाइसेंसों में 10 फ़ीसदी की कमी की जाएगी और शराब सिर्फ़ फ़ाइव स्टार होटलों में ही बिकेगी |10 साल बाद राज्य में इसका पूरी तरह निषेध कर दिया जाएगा |

एक सर्वे के मुताबिक़ केरल में बच्चे साढ़े 13 साल की उम्र में ही शराब पीना शुरू कर देते हैं, जबकि देश के दूसरे हिस्सों में यह उम्र औसतन चार साल अधिक है | गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज एर्नाकुलम के मनोचिकित्सा विभाग के 73 स्कूलों में हुए अध्ययन से पता चला है कि 15 फ़ीसदी बच्चे इस उम्र में पहली बार शराब पीते हैं | मनोचिकित्सा विभाग के एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. टी.एस. जैसूरिया के मुताबिक़ , ”इन 15 फ़ीसदी में से 20-22 फ़ीसदी ख़तरनाक शराब सेवन में शामिल हैं | यह इस तरह से संस्कृति का हिस्सा बन गया है कि इनमें से 70 फ़ीसदी की शुरुआत किसी पारिवारिक समारोह या त्योहार की पार्टियों में होती है |’’ केरल में प्रति व्यक्ति शराब की खपत आठ लीटर प्रति वर्ष है जो पूरे भारत में सबसे ज़्यादा है | डॉक्टरों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने शराब के सेवन को दुर्घटनाओं और शादियाँ टूटने की वजह बताया है |
अक्सर देखा जाता है कि राज्य शराबबंदी का ऐलान तो कर देते हैं , पर शराब लाबी के दबाव या राजस्व की कमी का बहाना बनाकर फिर पहले से अधिक शराब का फैलाव करने लगते हैं | उन्हें जनहित का ज़रा भी खयाल नहीं रहता | ऐसा ही राजस्थान में हो चुका है | वहां की प्रचंड बहुमतवाली भाजपा सरकार ने पिछले दिनों शराब के फैलाव का एक और क़दम उठाकर आम जन को हैरानी और परेशानी में डाल दिया है | राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार का मानना है कि साधन सम्पन्न, उच्चवर्गीय और उच्च कुलीन लोगों को शराब की दुकानों पर जाकर और भीड़ में शामिल होकर शराब खरीदने में शर्म, संकोच तथा हीनता का अनुभव होता है, इस स्थिति को बदलना राज्य सरकार की प्राथमिकता है |
इस सिलसिले में राष्ट्रवाद और भारतीय संस्कृति की ध्वजावाहक भाजपा की वसुंधरा सरकार ने अपने अधिकारियों को निर्देशित किया है कि राज्य की राजधानी जयपुर में स्थित सभी मॉल्स में खरीददारी करने के लिये जाने वाले सम्पन्न, उच्चवर्गीय और उच्च कुलीन लोगों के लिये मॉल्स में ही शराब खरीदने की व्यवस्था की जाए | राजस्थान की शुरू से ही राज्य सरकार से यही उम्मीदें रही हैं कि वसुन्धरा राजे के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार सभी वर्गों के हितों में कुछ न कुछ क्रान्तिकारी काम उठाए |
राज्य सरकार लोकसभा चुनाव होने तक तो एक दम शान्त रही, लेकिन केन्द्र में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलते ही राज्य में भाजपा सरकार जन अहित पर उतर आयी । वसुंधरा सरकार के फ़ैसले के अनुसार , शराब खरीदने में होने वाले शर्म, संकोच तथा हीनता से मुक्ति दिलाने के व्यापक प्रबंध किए जा रहे हैं | अब जयपुर के हर मॉल में शराब की दूकान होगी |
उल्लेखनीय है कि भाजपा सरकार के पिछले कार्यकाल में शराब की हजारों नयी दुकानें खोली थी और देर रात तक शराब की बिक्री होती थी , जिसके चलते हज़ारों परिवार बर्बाद हो गये और अनेक घर टूट गये। इस स्थिति पर कांग्रेस सरकार ने नियन्त्रण करने का असफल प्रयास किया था। गुजरात में पूर्ण शराबबंदी लागू है , लेकिन सरकार का शराब की कालाबाज़ारी पर कोई ख़ास नियंत्रण नहीं है |
ऐसा भी नहीं कि राज्य सरकार अवैध शराब न पकड़ती हो | एनडी टीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार , पिछले डेढ़ साल में वहां ढाई अरब रूपये से भी अधिक की शराब पकड़ी गयी | मतलब यह हुआ कि शराबबंदी को कारगर ढंग से नहीं लागू किया गया है | गुजरात के साथ ही ऐसी ही स्थिति मणिपुर, मिज़ोरम और नगालैंड की है |
जब राजस्व के संकट का सवाल केरल के मुख्यमंत्री ओमेन चाँडी से पूछा गया तो उन्होंने कहा, ”राजस्व बिल्कुल समस्या नहीं है | केरल जैसे राज्य के लिए 9000 करोड़ रुपए एक बड़ी राशि है | मगर यह सिर्फ़ काग़ज़ों में है | हम इससे ज़्यादा पैसे का नुक़सान स्वास्थ्य सेवाओं, हादसों और आपराधिक मामलों में उठा रहे हैं | सामाजिक कुप्रभाव इससे भी ज़्यादा हैं | ”
मुख्यमंत्री के मुताबिक , इस फैसले को कैबिनेट जल्द हरी झंडी दे देगी। इस साल सरकार पहले ही 418 बार बंद कर चुकी है। साथ ही अगले साल मार्च तक दूसरे 312 बारों का लाइसेंस आगे नहीं बढ़ाया जाएगा। राज्य के 23 वाई स्टार होटलों को सिर्फ एक लाइसेंस दिया जाएगा। इसके अलावा रिटेल में शराब बिक्री कम करने के लिए सरकार ने हर रविवार और महीने की पहली तारीख को ड्राई डे घोषित कर दिया है।
सरकार के इस कदम से राज्य को हर साल 8000 करोड़ रुपये का नुकसान होगा। शुरुआत में सात सौ बार और शराब बेचने वाली कुछ दुकानें बंद की जाएंगी और हर महीने शराब मुक्त दिनों की संख्या बढ़ाई जाएगी | साथ ही सरकार द्वारा संचालित 338 शराब की दुकानों में से हर साल दस प्रतिशत को बंद किया जाएगा |
बताया जाता है कि शराबबंदी के लिए केरल के सत्ताधारी गठबंधन के मज़बूत धड़ों के अलावा चर्च और मुस्लिम संगठनों ने भी सरकार पर दबाव बना रखा है | राज्य कांग्रेस अध्यक्ष वीएम सुधीरन ने चर्च प्रतिनिधियों, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग और गठबंधन के अन्य दलों के साथ इस साल अप्रैल से ही 418 रेस्तरां बार के लाइसेंसों का नवीनीकरण रोकने के आंदोलन की अगुआई की थी |
राज्य कांग्रेस अध्यक्ष ने मीडिया को बताया कि ”जब से ये 418 लाइसेंस वापस लिए गए, हम इसका असर देख सकते हैं | अपराधों में कमीआयी है | घरेलू हिंसा घटी है और हादसों का फीसद गिरा है |सवाल राजनीतिक इच्छाशक्ति का है कि वह हममें है या नहीं ?’’उनका कहना है, ”चिंताजनक यह है कि कई नवजवान इसकी चपेट में आ रहे हैं | शराब की खपत कम करने के लिए ही यूडीएफ़ इस फ़ैसले तक पहुंची है |’’
उल्लेखनीय है कि 418 रेस्तरां बार के लाइसेंसों के नवीनीकरण से यूडीएफ़ सरकार के इन्कार के बाद मामला राज्य के हाईकोर्ट में विचाराधीन है | हमारे देश में इस समय शराब की 120 करोड़ लीटर वार्षिक क्षमता की 165 से अधिक फैक्ट्रियां हैं । यहां महिला-दुर्व्यवहार और अपराध की अन्य घटनाओं में भारी वृद्धि होती जा रही है । एक अमेरिकी शोध के अनुसार , 95 फीसद हत्याओं, 24 फीसद आत्महत्याओं के लिए शराब सेवन ज़िम्मेदार है, जबकि 25 से 30 फीसद मानसिक विक्षिप्तता के शिकार हो जाते हैं । वास्तव में शराब-सेवन समाज के लिए कलंक है, अभिशाप है । इससे जनता को दूर रखने के लिए व्यापक और प्रभावकारी क़दमों की आवश्यकता है ।
केरल में शराबबंदी के प्रयास पर भी सियासत हावी है | यूडीएफ़ के विरोधी लेफ़्ट डेमोक्रेटिक फ़्रंट ने इसे ‘राजनीतिक’ क़रार दिया है | एलडीएफ़ के एक पूर्व मंत्री एम. ए. बेबी ने यूडीएफ़ के फ़ैसले को ‘राजनीतिक’ बताया | कोच्चि स्थित सेंटर फ़ॉर सोश्यो इकोनॉमिक एंड एनवायर्नमेंटल स्टडीज़ के चेयरमैन के. के. जॉर्ज ने इसे ‘कांग्रेस में चल रही अंदरूनी उठापटक का स्वाभाविक नतीजा बताया | बेबी कहते हैं, ‘‘मैं शराब सेवन के ख़िलाफ़ हूँ | कई ग़रीब और मध्यमवर्गीय परिवार बीमारियों से जूझ रहे हैं | मगर पाबंदी अव्यावहारिक और नाकाम रही है | इससे केवल अवैध शराब की खपत बढ़ेगी | हमने पहले बंगलौर में बड़े पैमाने पर ऐसी दुर्घटनाएं देखी हैं |’’
वे बंगलोर में जुलाई 1981 में अवैध शराब के कारण हुए हादसे का ज़िक्र कर रहे थे, जब उसे पीकर 382 लोगों की मौत हो गई थी , तब सरकार ने व्हिस्की, रम, ब्रैंडी और बीयर के दामों में बेतहाशा वृद्धि कर दी थी | के . के. जॉर्ज कहते हैं, ”यह फ़ैसला उन लोगों की शराब तक पहुंच पर रोक लगाएगा, जो उसे खरीदने के लिए लाइन में नहीं खड़े हो सकते | मगर कोई नहीं जानता कि सरकार के पास अवैध शराब निर्माण और तस्करी रोकने की क्षमता है या नहीं |यह यक़ीनन बहुत सोचा-समझा फ़ैसला नहीं है |’’
स्पष्ट है ,ये बयान बहुत निराशावादी हैं | यह कहना उचित नहीं कि कोशिश को पहले ही नाकाम मन लिया जाए और कोई क़दम ही न उठाया जाए | वैसे भी केरल ने वैसे घरेलू ताड़ी पर रोक न लगाने का फ़ैसला कर रखा है , क्योंकि पिछड़े समुदायों में से एक ‘ इलावास ‘ इसके निर्माण में शामिल है | आश्चर्य और चिंता की बात है कि केरल में शराबबंदी की घोषणा के बाद कई संगठन इसके विरोध में उतर आए हैं। इसे एक हिंदूवादी संगठन ‘ नारायण धर्म परिपालना योगम ‘ के नेता नातेशन ने शराबबंदी के फ़ैसले को साम्प्रदायिक रंग दे दिया है।
उन्होंने कहा है कि शराबबंदी करने का निर्णय हिंदूओं को प्रभावित करेगा। नातेशन ने कैथोलिक पादरियों से पूछा है कि क्या चर्च अपनी प्रार्थनाओं में वाइन का इस्तेमाल रोकने को तैयार हैं। नातेशन ने यह कहा है कि जो बार बंद हो चुके हैं वे हिंदूओं के थे और जो बंद नहीं हैं वे ईसाइयों के हैं। इस बयान पर बयानबाज़ी का दौर शुरू होना ही था , सो हुआ | कैथोलिक संप्रदाय के मुख्य पादरी फ्रांसिस कल्लाराकल ने नातेशन के बयान को साम्प्रदायिक बताते हुए कहा है कि प्रार्थना के दौरान वाइन का चलना ईसाइयों की आस्था और अक़ीदे से जुड़ा मामला है। यह तब तक चलेगा , जब तक दुनिया कायम है।
वहीं इस विवाद में एक और हिंदू नेता कूद पड़े हैं। ‘नायर सर्विस सोसायटी’ के प्रमुख नेता जी. सुकुमारन नायर ने कहा है कि केरल में शराब बंद करने देने का निर्णय गैर अमली और अव्यावहारिक है। नायर ने आरोप लगाया कि यह फैसला ईसाइयों और मुस्लिमों के हित में है।
हिन्दू धर्मग्रन्थ शराब सेवन के विरुद्ध हैं | क्षेपक की बातें छोड़ दीजिए , प्रमुख ग्रंथों में इसका स्पष्ट निषेध है | ऋग्वेद [ 7-86-6 ] के अनुसार, वसिष्ठ ने वरुण से प्रार्थना भरे शब्दों में कहा है कि ‘‘मनुष्य स्वयं अपनी वृत्ति अथवा शक्ति से पाप नहीं करता, प्रत्युत भाग्य, सुरा, क्रोध्, जुआ और असावधानी के कारण वह ऐसा करता है ।’’
शतपथ ब्राह्मण [ 5-5-4-28 ] में सोम को सत्य, समृद्धि और प्रकाश एवं सुरा को असत्य क्लेश और अन्धकार कहा है। सुरा अथवा मद्य का सेवन एक महापातक कहा गया है [ वसिष्ठ धर्म सूत्र 1-20, विष्णु धर्म सूत्र 15-1, आपस्तम्ब धर्म सूत्र 1-7-21-8, याज्ञवल्क्य 3-227 ]।
गौतम [ 2-25 ] , आपस्तम्ब धर्म सूत्र [ 1-5-17-21] और मनु [11-94] ने एक स्वर से ब्राह्मणों के लिए सभी अवस्थाओं से नशीली वस्तुओं को वर्जित ठहराया है । मनु [ 9-80 ] और याज्ञवल्क्य [ 1-73 ] के अनुसार ‘‘मद्यपान करने वाली पत्नी त्याज्य है ।’’ यदि ब्राह्मण पत्नी सुरा-पान करती है तो वह अपने पति के लोक को नहीं प्राप्त कर सकती, वह इसी लोक में जोंक, सीपी, घोंघा बनकर जल में घूमती रहती है । याज्ञवल्क्य स्मृति में है, ‘‘सुरापान करने वाली पत्नी अपने आगे के जन्मों में इस संसार में कुतिया, चील या सूअर होती है [ 3-256 ]।’’
यह भी सच है कि हिन्दू समाज में कुछ ऐसे त्योहार प्रचलित हैं, जिसमें शराब और जुआ को धर्म -विहित ठहरा दिया जाता है , जो पुर्णतः अनुचित है | वास्तव में शराब मन-मस्तिष्क को सर्वाधिक प्रभावित करती है और बुद्धि को नष्ट कर डालती है । डॉ॰ ई॰ मैक्डोवेल कासग्रेव [ एम॰डी॰, एफ़॰आर॰सी॰पी॰] के अनुसार,‘‘अल्कोहल मस्तिष्क को नष्ट कर देती है ।’’अनेक हिन्दू और बौद्ध राजाओं ने अपने शासनकाल में शराबबंदी की नीतियां अपनायीं । चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के काल में कौटिल्य ने शराब की दुकानों पर स्वादिष्ट भोजन रखवा दिये । जो व्यक्ति शराब पीने के लिए दुकान पर जाता, उसके सामने अच्छे भोजन पेश किये जाते । इनका मूल्य बहुत सस्ता होता था । भोजन में कुछ ऐसी औषधियाँ मिली होती थीं, जिनसे शराब की लत छूट जाती थी । इस सम्राट के काल में शराब पीने और पिलाने वाले दोनों दंडित किये जाते थे । सम्राट अशोक भी इस नीति पर चलता रहा ।
हमारे देश में इस समय शराब की 120 करोड़ लीटर वार्षिक क्षमता की लगभग 165 फैक्ट्रियां कार्यरत हैं । यहां महिला-दुर्व्यवहार और अपराध की अन्य घटनाओं में भारी वृद्धि होती जा रही है । एक अमेरिकी शोध के अनुसार , 95 फीसद हत्याओं, 24 फीसद आत्महत्याओं के लिए शराब सेवन ज़िम्मेदार है, जबकि 25 से 30 फीसद मानसिक विक्षिप्तता के शिकार हो जाते हैं । वास्तव में शराब-सेवन समाज के लिए कलंक है, अभिशाप है । हर व्यसन से जनता को दूर रखने के लिए व्यापक और प्रभावकारी क़दमों की आवश्यकता है ।
– रामपाल श्रीवास्तव

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