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68वें स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने परंपरा से अलग हटकर बिना लिखा भाषण दिया , जो कई महत्वपूर्ण घोषणाओं से भरा था। उन्होंने एक पर जहाँ जातिवादी मानसिकता पर प्रहार किया , वहीं सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ वातावरण बनाने पर बल दिया | उन्होंने जनता का आह्वान किया कि भाईचारे का रास्ता अपनाएं , इसी में सबकी भलाई निहित है | उन्होंने अपनी पहचान एक बार फिर ‘ घोषणा पुरुष ‘ के रूप में बनाने की कोशिश की | गरीबों को बैंकों से जोड़ने, गांवों के विकास, पर्यावरण के विकास के लिए सफाई, आईटी सेक्टर और निर्माण के क्षेत्र के विकास का संकल्प लिया।
प्रधानमंत्री के भाषण के अन्य मुख्य बिन्दुओं में कुछ घोषणाएं इस प्रकार हैं – 1 . दो अक्तूबर से देश भर में सफाई अभियान की शुरुआत। 2 . एक साल में हर स्कूल में टॉयलेट बनाने का लक्ष्य। 3 . प्रधानमंत्री जन धन योजना के तहत गरीबों के बैंक खाते खुलेंगे। डेबिट कार्ड दिया जाएगा। एक लाख रुपए का बीमा होगा। 4 .संसद आदर्श ग्राम योजना के तहत हर संसदीय क्षेत्र में 2016 तक एक गांव का समग्र विकास किया जाएगा। और , 5 . भारत को मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का हब बनाने का एलान। ज़ाहिर है , ये आम बजट जैसी घोषणाएं हैं , जो अभी पिछले महीने विकासवादी संकल्प के रूप में सामने आ चुकी हैं |
अगर केवल बजटीय घोषणाओं को ही एक वित्तीय वर्ष की बची हुई अवधियों में अमली जामा पहना दिया जाए , तो भारत का कायाकल्प हो जाए ! मगर केवल घोषणाओं से देश की जनता का भला नहीं होनेवाला ! वैसे हमारे प्रिय देश में अवाम को घोषणाओं का जाम पिलाने की परंपरा रही है और जनता को फुसलाने व बहलाने का बड़ा हथियार !
1971 के चुनाव में कांग्रेस की ओर से इंदिरा गाँधी ने ‘ गरीबी हटाओ ‘ का नारा दिया था और सबसे बड़ा कांग्रेसी संकल्प क़रार दिया था | कांग्रेस द्वारा बार – बार चुनाव जीतने और सरकार बनाने के बावजूद यह महज़ चुनावी नारा ही बना रहा , जिसका इंदिरा गाँधी के पुत्र राजीव गाँधी ने भी भरपूर इस्तेमाल किया | किन्तु इस दिशा में क्रियान्वयन इस रूप में हुआ कि गरीबी बढ़ती चली गयी ! जो योजनाएं बनीं भी , वे कई पंचवर्षीय योजनाओं तक जारी रहीं |
दरअसल ये ख़ासकर मंत्रियों , अफ़सरों और अन्य राजनेताओं के भरण – पोषण का ज़रिया बनती रहीं और भ्रष्टाचार रूपी काल के गाल में समाती रहीं | फिर भी जिन – जिनकी घोषणाओं की बदौलत देश जिस मक़ाम पर पहुंचा है , उनका स्मरण करना प्रधानमंत्री जी नहीं भूलते , लेकिन इस बात को शायद भूल जाते रहे कि लालकिले की प्राचीर से और चुनावी जनसभा के संभाषण में अंतर होता है |
उन्होंने कहा , ‘भाइयों और बहनों, देश की आजादी के बाद भारत आज जहां भी पहुंचा हैं, उसमें सभी सरकारों, सभी राज्य सरकारों का योगदान है। मैं सभी पूर्व सरकारों को, सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों को इस पल आदर का भाव प्रकट करना चाहता हूं। जो देश पुरातन सांस्कृतिक धरोहर की उस नींव पर खड़ा है, जहां हम साथ चलें, मिलकर सोचे, मिलकर संंकल्प करें और देश को आगे बढ़ाएं। ‘ प्रधानमंत्री ने देश को धूल – धूसरित करनेवाले भ्रष्टाचार के ज्वलंत मुद्दे को छुआ ही नहीं , जबकि अभी कुछ दिन पहले ही करगिल में उन्होंने भ्रष्टाचार रोकने का अपना संकल्प इन शब्दों में व्यक्त किया था , ‘ न खाऊंगा न खाने दूंगा | ‘
स्वतंत्रता दिवस पर उन्होंने यह अवश्य कहा कि ‘जन आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए जो शासन व्यवस्था नाम की मशीनरी है, उसे धारदार बनाना है। सरकार में बैठे लोगों के पास सामर्थ्य है। मैं उस शक्ति को जोड़ना चाहता हूं। हम उसे करके रहेंगे। हमारे महापुरुषों ने आजादी दिलाई। क्या उनके सपनों को पूरा करने के लिए हमारी जिम्मेदारी है कि नहीं? क्या हम जो दिन भर कर रहे हैं, क्या कभी शाम को अपने आप से पूछा कि क्या उससे गरीबों का भला हुआ, देश का भला हुआ? दुर्भाग्य से आज देश में माहौल बना हुआ है कि किसी के पास कोई काम लेकर जाओ तो वह पूछता है कि इसमें मेरा क्या? जब उसे पता चलता है कि उसमें उसका कुछ नहीं है तो वह कहता है मुझे क्या? हर चीज अपने लिए नहीं होती। कुछ चीजें देश के लिए भी होती हैं। हमें देश हित के लिए काम करना है। हमें यह भाव जगाना है।’
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